Monday, September 16, 2013

बुद्ध की शिक्षा


बुद्ध की शिक्षा से दूर होगा भ्रष्टाचारbuddha ki shiksha

 आने वाली पचीस तारीख को भगवान बुद्ध की जयंती है। और इस समय हमारे देश में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। सरकार ने भी अपने चार वर्ष पूरे कर लिए हैं तथा वह जश्न मना रही है कि विभिन्न सहयोगी पार्टियों ने बीच में ही हमें धोखा दे दिया इसके बावजूद हम सरकार चलाने और बचाने में कामयाब रहे। पर क्या इस बात से सरकार की नकामयाबी छिप जाएगी? क्या देश से मँहगाई कम हो जाएगी? या गरीब-मज‌बूर लोग भूख से नहीं तड़पेंगे? या सरकार में बैठे वे ढेर सारे भ्रष्ट लोग जनता को यह समझा पाने में कामयाब हो जाएँगे कि सीएजी की रिपोर्ट या समाचार चैनलों पर वर्ष भर छाई रही खबरें सब झूठी हैं? क्योंकि अगर हम भ्रष्ट होते तो जनता हमें चुनकर यूँ संसद में नहीं भेजती। ये सारे सवाल तब तक बेमानी हैं जब-तक वह व्यक्ति स्वयं नहीं सुधरता जो भ्रष्टाचार में संलिप्त है और बेहयाई से उस कुर्सी पर बैठा है जिस पर जनता ने विश्वास के साथ उसे बैठाया है। यह सब क्यों है? हमारे बीच के हमारे ही साथी, दोस्त, घर के लोग इतने भ्रष्ट क्यों हैं? यह सोचने का विषय है। यह सब इसलिए है क्योंकि हम सभी  अपने-अपने धर्मों से विमुख होते जा रहे हैं। इसका एक बड़ा ही अच्छा समाधान है वह है बुद्ध के शिक्षाओं का अनुपालन करना। अर्थात बुद्ध के रास्ते पर चलकर अपने आप को विभिन्न बुरी आदतों से  बचाना। जैसे- झूठ बोलना, शराब पीना, जुआँ खेलना, यहाँ तक कि विभिन्न अंधविश्वासों में पड़ना आदि। ये सभी  आदतें हमें अपने मार्ग से भटकाती हैं और गलत कार्य करने को प्रेरित करती हैं। क्योंकि भगवान बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में इन सारी चीजों से दूर रहने को कहा है। --ज्यादा कुछ नहीं बस उनके द्वारा बाताए गए पंचशीलों का पालन(अनुशीलन) भर करें जो  इस प्रकार हैं  1—पाणातिपाता वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात- मैं प्राणिमात्र की हत्या से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ। 2—आदिन्नादाना वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात- मैं किसी के दिए बिना उसकी वस्तु न लेने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ(चोरी न करना)। 3—कामेसु मिच्छाचारा वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात- किसी भी प्रकार की कामवासना से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ। 4—मुसावदा वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात-मैं किसी भी प्रकार का झूठ नहीं बोलूँगा। नरो वा कुंजरो जैसा भी  नहीं। 5— सुरा मेरिय मज्जपमादट्ठाना वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात- किसी भी प्रकार का नशा नहीं करूँगा।
      अगर ये सभी बातें अपने जे‌हन में बैठा ली जाएँ तो हम गलत मार्ग पर चलेंगे ही नहीं।
भवतु सब्ब मंगलं! रखंतु सब्ब देवता!
                      ---गुलाब चंद जैसल (बौधायन)

Friday, May 24, 2013

बुद्ध की शिक्षा


बुद्ध की शिक्षा से दूर होगा भ्रष्टाचारbuddha ki shiksha

 आने वाली पचीस तारीख को भगवान बुद्ध की जयंती है। और इस समय हमारे देश में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। सरकार ने भी अपने चार वर्ष पूरे कर लिए हैं तथा वह जश्न मना रही है कि विभिन्न सहयोगी पार्टियों ने बीच में ही हमें धोखा दे दिया इसके बावजूद हम सरकार चलाने और बचाने में कामयाब रहे। पर क्या इस बात से सरकार की नकामयाबी छिप जाएगी? क्या देश से मँहगाई कम हो जाएगी? या गरीब-मज‌बूर लोग भूख से नहीं तड़पेंगे? या सरकार में बैठे वे ढेर सारे भ्रष्ट लोग जनता को यह समझा पाने में कामयाब हो जाएँगे कि सीएजी की रिपोर्ट या समाचार चैनलों पर वर्ष भर छाई रही खबरें सब झूठी हैं? क्योंकि अगर हम भ्रष्ट होते तो जनता हमें चुनकर यूँ संसद में नहीं भेजती। ये सारे सवाल तब तक बेमानी हैं जब-तक वह व्यक्ति स्वयं नहीं सुधरता जो भ्रष्टाचार में संलिप्त है और बेहयाई से उस कुर्सी पर बैठा है जिस पर जनता ने विश्वास के साथ उसे बैठाया है। यह सब क्यों है? हमारे बीच के हमारे ही साथी, दोस्त, घर के लोग इतने भ्रष्ट क्यों हैं? यह सोचने का विषय है। यह सब इसलिए है क्योंकि हम सभी  अपने-अपने धर्मों से विमुख होते जा रहे हैं। इसका एक बड़ा ही अच्छा समाधान है वह है बुद्ध के शिक्षाओं का अनुपालन करना। अर्थात बुद्ध के रास्ते पर चलकर अपने आप को विभिन्न बुरी आदतों से  बचाना। जैसे- झूठ बोलना, शराब पीना, जुआँ खेलना, यहाँ तक कि विभिन्न अंधविश्वासों में पड़ना आदि। ये सभी  आदतें हमें अपने मार्ग से भटकाती हैं और गलत कार्य करने को प्रेरित करती हैं। क्योंकि भगवान बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में इन सारी चीजों से दूर रहने को कहा है। --ज्यादा कुछ नहीं बस उनके द्वारा बाताए गए पंचशीलों का पालन(अनुशीलन) भर करें जो  इस प्रकार हैं  1—पाणातिपाता वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात- मैं प्राणिमात्र की हत्या से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ। 2—आदिन्नादाना वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात- मैं किसी के दिए बिना उसकी वस्तु न लेने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ(चोरी न करना)। 3—कामेसु मिच्छाचारा वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात- किसी भी प्रकार की कामवासना से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ। 4—मुसावदा वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात-मैं किसी भी प्रकार का झूठ नहीं बोलूँगा। नरो वा कुंजरो जैसा भी  नहीं। 5— सुरा मेरिय मज्जपमादट्ठाना वेरमाणी सिक्खापदं समादियामि। अर्थात- किसी भी प्रकार का नशा नहीं करूँगा।
      अगर ये सभी बातें अपने जे‌हन में बैठा ली जाएँ तो हम गलत मार्ग पर चलेंगे ही नहीं।
भवतु सब्ब मंगलं! रखंतु सब्ब देवता!
                      ---गुलाब चंद जैसल (बौधायन)